वो मेरी स्नेह की पुड़िया
वो जब भी सामने रहती है
सब गम भूल जाता हूँ,
नहीं कुछ याद रखता हूँ
स्वयं को भूल जाता हूँ।
खुशी का गीत है वह
प्रेम का संगीत है वह ही
उसी के सामने लिख कर
उसी को ही सुनाता हूँ।
न चेहरे पर उदासी एक पल
उसके रहे ऐसा,
हमेशा यत्न करता हूँ
चुहल करके हंसाता हूँ।
अगर मन में कभी मेरे
थकावट हो जरा सी भी,
वो तत्क्षण भांप लेती है
मुझे उत्साह देती है।
बताता हूँ वो ऐसी कौन है
जो पूर्ण अपनी है,
वो मेरी स्नेह की पुड़िया
वो मेरी धर्मपत्नी है।
———– डॉ0 सतीश पाण्डेय
वाह कमाल है सर, बहुत खूब
बहुत खूब
बहुत ही बढ़िया
कवि सतीश जी की उनके जीवन साथी पर बहुत ही सुन्दर रचना ।
बहुत ख़ूब, लाजवाब
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति महोदय
वाह क्या बात है। बहुत सुंदर कविता।👍👍
अतिसुंदर