वो हमसे कहते हैं
वो हमसे कहते हैं कुछ ढंग का लिखा करो प्रज्ञा,
जिन्हें खुद कलम पकड़ना नहीं आता.
आज वो हमको बेशर्म कह रहे हैं
जिन्हें खुद शर्माना नहीं आता
कैसे कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं प्रज्ञा,
वो हमें हद में रहना सिखा रहे हैं, जिसे खुद हद में रहना नहीं आता
हमें मोहब्बत का पाठ पढ़ाने चले हैं वो,
जिन्हें खुद मोहब्बत करना नहीं आता….
वाह प्रज्ञा जी बहुत खूबसूरत
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं
Great
Thanks
बहुत खूब
Thanks
बहुत खूब