व्यापार

दिल की जो बातें थीं सुनता था पहले,
सच ही में सच था जो कहता था पहले।
करने अब सच से खिलवाड़ आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।

कमाई की खातिर दबाता है सब को ,
गिरा कर औरों को उठता है खुद को।
कि जेहन में उसके जुगाड़ आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।

मुनाफे की बातें ही बातें जरूरी।
दिन में जरूरी , रातों को जरूरी।
देख वायदों में उसके करार आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।

मूल्यों सिद्धांतों की बातें हैं करता,
मूल्यों सिद्धांतों की बातों से डरता,
कथनी करनी में तकरार आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।

नहीं कोई ऐसा छला जिसेको जग में,
शामिल दिखावा हर डग, पग, रग में।
जब करने अपनों पे प्रहार आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।

पैसे की चिंता हीं उसको भगाती,
दिन में बेचैनी , रातों को जगाती।
दौलत पे हीं उसको प्यार आ गया,
लगता है उसको व्यापार आ गया।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

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