शीशे सी पहचान
ये दिल दिमाग़ मेरा, है साफ़ आईने सा।
सचमुच में तुम हो जैसे, इसमें वही दिखेगा॥
फितरत में भी हमारी, शीशे सी ख़ासियत है।
तुम सामने तो आओ, नफरत या प्यार लेकर।
नफरत दिखाओ या फिर, दिखलाओ प्यार इसको।
जो भी दिखाओगे तुम, तुमको वही मिलेगा॥
इस बात को समझ लो, हम काँच से नाज़ुक है।
गर हाँथ से छूटे और, टूटे तो बिखरना है।
पर टूट के बिखरा तो, मुझसे संभल के चलना।
वर्ना ये टूटा शीशा, पैरों में भी चुभेगा॥
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–शिवकेश द्विवेदी
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