शुक्र मनाओ कि वो रो जाती है
शक्ति संपन्न की जनक दुलारी
जब तुमने लांछन लगाया था
चाहती प्रलय वो ला सकती थी
धरती की गोद में सो जाती है
शुक्र मनाओ कि वो रो जाती है
धरती पर एक कण बचता
जो काली शांत ना होती तो
अर्धांग की छाती पैर धारा
फिर दुख संताप में खो जाती है
शुक्र मनाओ कि वो रो जाती है
जब क्रोध में नारी रोए तो
घर में महाभारत हो जाती है
अपने परिवार में शांति रहे
आंसू से क्रोध को धो जाती है
शुक्र मनाओ कि वो रो जाती है
जाने कितनी वीरांगना भारत में
रण जाने को खड़ी हो जाती है
खंजर की धार देखे उंगली पर
फिर लहू देख खुश हो जाती हैं
पर शुक्र मनाओ कि रो जाती हैं
Nice
Thank-you
Wah
Thank-you
Nice
Thank-you
आंसुओं कीमत कौन जानता है जो जाने उसे कभी ना छोड़ो
right
Nice
🙏🙏🙏
बहुत सुन्दर।
Nice
🙏🙏