संवेदनाओं की माला
संवेदनाएं कहाँ रहती हैं आज-कल,
मैं यह जानती नहीं..
लोग क्यों जलाते हैं नफरत
के चिराग
मैं यह जानती नहीं..
ऊब चुकी हूँ जिन्दगी
से अपनी,
साँसों की डोर कब
टूटेगी
मैं यह जानती नहीं…
संवेदनशील मुद्दों पर
लोग मौन धारण कर लेते हैं
करते हैं क्यों ऐसा
मैं यह भी जानती नहीं..
मरती है मानवता जब
निहत्थे होकर सड़कों पर
चुप हो जाते हैं क्यों सब
यह भी जानती नहीं…
टूट जाती हैं जब संवेदनाओं की माला
क्यों बिखर जाती है मानवता
मैं यह जानती नहीं…
भावपूर्ण रचना।
🙏
लोग आजकल झूठे, स्वार्थी, खुदगर्ज, फरेबी,पाखण्डी इत्यादि हो गए हैं इस वजह से सब की संवेदना समाप्त हो जाती है
बेहतरीन प्रस्तुति
🙏🙏
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
Sunder
Nice
🙏🙏
धन्यवाद
सच है कि कुछ लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं।
लेकिन ज़िन्दगी में कुछ लोग अच्छे भी मिलते हैं।
हां जिनकी संवेदनाएं मर चुकी है ,उन लोगों के बारे में अच्छा चित्रण किया है।
🙏🙏
बहुत ही उम्दा