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सच में मिली आजादी?

हिन्द के निवासियों

धरती माँ पुकारती है

उठ खड़े हो जाओ तुम

माँ भारती पुकारती है

धर्म, जाती-पाती से तुम

बाहर आकर भी देख लो

आजाद भारत में आज भी

मजदूर बंधुआ बने देख लो

ये आजादी है या भ्रमजाल

वक्त चल रहा ये कैसी चाल

भूख की खातिर जहाँ

जिस्म बिकते देख लो

शौक की खातिर जहाँ

जिस्म नुचते देख लो

मानव की औकात क्या

पशु असुरक्षित हैं, देख लो

भारत के कर्णधारों से

भविष्य के सितारों से

माँ भारती ये पूछती है

सच में मिली आजादी है?

या फिर से कोई सजा दी है?

सच में आजादी गर चाहते हो

मत बटने दो देश को

धर्म-जाती के नाम पर

और अस्मिता की रक्षा करो

अपनी जान पर खेल कर

सुरक्षित स्त्री-पुरुष हों,

भरपेट भोजन गरीब को

छत बेघर को मिले,

आसरा अनाथ को

जिस दिन यह हो जायेगा

माँ भारती का बच्चा बच्चा

आजादी वाले गीत गायेगा

ऐसा हुआ नहीं कभी तो

आजादी का दिन मात्र एक

झंडा फहराने का त्यौहार

बन कर ही रह जायेगा.

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