सम्भाल कर

रक्खे तो हैं कुछ टुकड़े सम्भाल कर,
प्यारे से दिल के चन्द हिस्से सम्भाल कर,
बनाते थे लोग पल पल बात कई,
आज बस छिपा के रक्खे हैं कुछ किस्से सम्भाल कर,
बहुत सारे तोहफा ऐ यादें बनी थी मगर,
अब किताबों में दबा रक्खे हैं सूखे गुलाब सम्भाल कर॥
राही (अंजाना)

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