साया तेरा
कविता- साया तेरा
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माँ क्यों रो रहीं हो
अब तक क्यों जाग रही हो,
कसम तेरी माँ मुझे भूख नही
उठो क्यों छुप छुप के रो रही हो,
मेरे कपड़े की, क्यों चिंता करती हैं,
क्या आंचल तेरा किसी कपड़े से कम है,
मेरे भूख प्यास की चिंता तुमको,
क्या कभी एक पल अपने –
भूख प्यास की चिंता तू करती है,
चाह तेरी मै स्वस्थ रहूं
चाह तेरी मै मस्त रहूं,
एक बात दो माँ मेरी,
तुम स्वस्थ नही मै कैसे स्वस्थ रहूं,
मेरे कंधे अभी मजबूत नही,
होटल भीख शिवा कहीं काम नही,
माँ मेरा शोषण हो जाएगा
मेरी अंगुली पकड़ो मुझे रास्ते का ज्ञान नहीं,
मत मुझे अकेले छोड़ा करो
अपने साथ सदा रखा करो,
कुछ गीत सीखा दो मां मुझको
मैं गीत सुनाऊं, कोई पैसा देगा मुझको,
वह दिन मेरा अंतिम हो,
जब तेरे बारे में ऐसी मेरी इच्छा हो
सब दुख सह तुम्हें पालूंगी
है चाह मेरी तेरे कंधे पर बस्ता हो
मैं तेरी निर्माता हूं
मात-पिता और भ्राता हूं,
मेरी गहराई धैर्य क्या जानोगे
मैं मां हूं इसलिए दुख पाती हूं,
ए आंसू मुझे बताते हैं,
तुम पढ़ो इसलिए बह जाते हैं,
मत साथ रखों बेटे को
बह बह के मुझे बताते हैं,
ए आंसू सब सुख मुझे दिख लाते हैं
ए आंसू तुझे बढ़ने का मार्ग बनाते हैं,
बेटा भीख मांग कर तुझे पढ़ाऊंगी
गरीबों के घर से भीमराव निकलते हैं
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कवि ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’-
बहुत सुन्दर रचना
बहुत खूब👌🏻
मां बेटे के मध्य सुंदर संवाद का चित्रण प्रस्तुत किया है आपने अपनी कविता के माध्यम से, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
भावपूर्ण अभिव्यक्ति