सिर्फ तुम्हारी
जब तुम आँखों से आस बन के बहते हो
उस वख्त तम्हारी और हो जाती हूँ मैं
लड़खड़ाती गिरती और संभलती हुई
सिर्फ तुम्हारी धुन में नज़र आती हूँ मैं
लोगो की नज़रो में अपनी बेफिक्री में मशगूल सी
और भीतर तुम में मसरूफ खूद को पाती हूँ मैं
वो दूरियां जो रिश्तो को नाकामयाब कर देती हैं
उन दूरियों का एहसान मुझ पे, जो खुद को तुम्हारे और करीब पाती हूँ मैं
सारे रस्मों रिवाज़ो को लांघ कर बंधन जो तुमसे जुड़ा
अब उसी को अपना ज़मीनो आसमाँ मानती हूँ
हुआ है ना होगा अब किसी से इस कदर इश्क हमसे पिया
अब ये गुनाह हो या रहमत खुदा की, इसे अपना गुरूर जानती हूँ मैं
सुन्दर रचना
Nice
वाह बहुत सुंदर
Mai Shayar to nahi
Magar ai Haseeb jab se dekha Maine tujhko,mujhko shayri aa gai
Nice
bahut khubsurat rachna
Nyc