स्मृतियां
स्मृतियां, विस्मृतियां आती नहीं जाती रही।
हृदय में कोलाहल मचाती रही।
अश्रु मिश्रित सी रातों में,
दुख सुख की बदली छाती रही।
झंकृत ,अलंकृत सी सांसों को,
मधुर बयार महकाती रही।
एक अल्हड़ बाला हृदय में,
अठखेलियां मचाती रही।
स्मृतियां कभी रुदन कभी उल्लास से सराबोर कर,
नव रसों का पान कराती रही।
कभी दुख -सुख के नगमे गाती रही,
कभी धड़कनों का साज़ बजाती रही।
रात भर मुझे ना सोने दिया,
स्मृतियां आती रही जाती रही।
निमिषा सिंघल
Good
Dhanyvad
bahut sundar rachna , bahut acchi hindi hai apki
Bahut bahut aabhar Archana ji
अति उत्तम रचना
Dhanyvad
Bahut aabhar
Sundar
Thank you
Dhanyvad aapko
वाह बहुत सुंदर
Dhanyvad Mahesh Ji
Dhanyvad aapko