हंसते खेलते बच्चे
घर के आँगन में
हँसते खेलते बच्चे
दुनियादारी से अनजान
खिले हुए फूल की तरह
सौंदर्य और सुगंध बिखेर रहे हैं
भौरो की तरह मन
प्रतिदिन करता है रसपान
भूल जाते हैं तनाव सब
भूल जाते हैं थकान
बाल हठ तोतली वाणी
सुनने को व्याकुल रहते कान
इनकी शरारते शिशु कृष्ण की याद दिलाती है
देख कर सुहाना दृश्य आँखे
गोपियाँ बन जाती हैं
निश्छल भाव से बच्चो का खिलौनों से प्यार
देखकर बचपन की याद आती है
स्कूल का बस्ता भारी और लोरियाँ
ही भाती है
हंसते खेलते बच्चे
तुम्हें देखते रहे जी भरता नहीं
तुम्हें देख लेने से मंदिर जाने को जी
करता नहीं
Great and very beautiful poem