हिंदुत्व
साधु नही आधार स्तंभ थे जो हिंसा की बलि चढ़े,
हिन्दू धर्म की लाज ये कैसी निर्ममता स्थली चढ़े ।
है कैसा इंसाफ कि जिसने संस्कृतियों को पाला हो,
वही भीड़ के हाथों ऐसी बर्बरता का निवाला हो ।
जुड़े हुए थे हाथ संत के दिया वास्ता भिक्षा का,
जाने कितनी उम्मीदों से थामा हाथ सुरक्षा का ।
कैसे एक निरीह साधु का हाथ यूँ तुमने झटक दिया,
कैसे दिव्य सनातन को यूँ भीड़ के आगे पटक दिया ।
वो साधु जिसकी रक्षा पर मर जाते मिट जाते तुम,
रक्षक के माथे कलंक का टीका नही लगाते तुम ।
आज ये करलो प्रश्न स्वयं से, निद्रा से कब जागोगे,
दुनिया से छिप लोगे लेकिन खुद से कब तक भागोगे ?
दे जाओ इतिहास के अब है समय अखंड हो जाने का,
ऐसा ना हो मौका माँगो कल को तुम पछताने का ।
अभी देख लो आज वक्त है, ऊपर जाती सीढ़ी को,
वरना कहना कायर थे हम,आने वाली पीढ़ी को ।
कई ज्वलंत प्रश्नों की मन में,फांसें देकर चले गए,
लोग तो जीवन देते हैं वो साँसें देकर चले गए ।
लोग तो जीवन देते हैं वो साँसें देकर चले गए…#पालघर
भावपूर्ण ,सुन्दर प्रस्तुति
बेहतरीन
स, बहुत खूब
भावपूर्ण