बहकावों में छले गए..
कुछ दावों में, वादों में, कुछ बहकावों में छले गए, भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए.. खेतों में पगडण्डी की जो राह बनाया…
कुछ दावों में, वादों में, कुछ बहकावों में छले गए, भोले-भाले कुछ किसान झूठे भावों में चले गए.. खेतों में पगडण्डी की जो राह बनाया…
‘रेत पर लिख दो और लहरों के हवाले कर दो, आज इस साल की सब बन्द रिसालें कर दो.. इस नए साल में बाहर न…
‘किससे शिकवा करें दामन ये चाक होना था, मगर करते भी क्या, ये इत्तेफाक होना था.. गमों की भीड़ हमारी कश्मकश में उलझी रही, तय…
जब से तुझसे मिला दुगनी हयात होती गई, मेरे लिए तू मेरी कायनात होती गई.. यूँ रहा रंग भी अब तक की मुलाकातों का, के…
‘कुछ तो है कि तुझसे किये वादे की खातिर, खुद से ही उलझ पड़ता हूँ कभी-कभी..’ – प्रयाग
‘वो जिसे तूने था पल भर में तार-तार किया, कभी तो पूछ अब वो ऐतबार कैसा है.. छोड़, जाने दे, आज तेरी बात करते हैं,…
‘वजह हुआ करती है नज़रों के झुक जाने में, बेबाक आँखों में शर्मिन्दगी का सलीका नही होता.. वो तोड़ सकते हैं मेरे यकीं को किसी…
‘हाँ मैंने उसको रोका था, फिर भी वो चौखट लाँघ गई.. जैसे बस जागने वाले तक, हो इस मुर्गे की बाँग गई.. बाकी सब निष्फल…
‘उलझ पड़ें न कहीं हम, के इस ज़िन्दगी से, अपनी क्या बनेगी, आज तक बनी किसकी है.. इसलिए रखता हूँ हर आतिश को खुद में…
‘फ़िज़ाओं के बदलने का इंतज़ार किसको है, रुसवा शख्सियत हूँ मैं ऐतबार किसको है.. आज दर-बदर हूँ तो ये भी सोचता हूँ, चलो देखता हूँ…
‘इस कदर गुज़रेंं हैं हम इश्क के दौर से, दिल धड़कता है यहाँ, सदा आती है कहीं और से..’ – प्रयाग मायने : सदा –…
ये दृश्य मैंने ही इन आँखों में उतारा है, ये खुद नही मरी है मैंने इसे मारा है.. ये खुद नही मरी है मैंने इसे…
‘आज रह-रह के वही शख्स याद आता है, मैं उसे जब भी मनाता था, मान जाता था.. मेरे ज़ाहिर से ग़म भी आज ना दिखे…
‘ठहरे पानी के ही मानिंद अपनी फितरत थी, न जगह छोड़ी और न ही किनारे तोड़े..’ – प्रयाग मायने : मानिंद – तरह/समान
‘देनी होगी ताकत अब दरख्तों को ज़िंदा रहने की, वो आज हमारी राख को मिट्टी समझ बैठे हैं..’ – प्रयाग मायने : दरख्तों को –…
‘समझ में ये नही आता कि आरज़ू क्या है, है दिल भी पास अगर फिर ये जुस्तजू क्या है..? मैंने देखा है आज खून-ए-जिगर भी…
‘हैं जबकि और भी कितने ही दर ज़माने में, क्यूँ फकत मेरे ठिकाने को चली आती हैं.. कितने मौजूद मददगार हैं यहाँ तेरे, मुश्किलें बस…
‘सबसे पहले मैं दुनियाँ में इस रिश्ते को पहचानती हूँ.. मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर, अपने पापा को जानती हूँ.. वो कहते हैं कि…
‘ दिल पर जो गुज़री थी उसे कुछ और ही रंग दे दिया मैंने, आजकल बहुत खुश हूँ किसी ने पूछा तो कह दिया मैंने..’…
‘अब इतनी ऊँची अपनी हैसियत बना डाली, कभी न खत्म हो वो कैफियत बना डाली.. तेरी यादें, तेरी हसरत का वो एहसास जुदा, पुरानी चीज़ें…
‘बेदिल किसे कहें, ज़माने को या खुदा को ? ‘वो’ जो कुछ देता है नही, या ‘वो’ जो छीन लेता है..’
‘मैं खुद को ना पहचान सकी, ऐसी दुनियाँ में धकेल दिया.. उसमें नफरत भी बेहद थी, तेज़ाब जो तुमने उड़ेल दिया.. तुमने जो छीनी है…
जित्थे वेखां ते मेनू तू ही नज़र औंदी है, के जेया तू ही रूह तू ही जिगर होंदी है.. तेनू सौ रब दी मेनू छड…
‘समंदर समझ रहा था कि मौजें यूँ ही बनी, आँसू हुए शुमार कुछ, तब जाके कहीं बनी..’ – प्रयाग मौजें – लहरें शुमार – गिनती…
‘कुछ घुला था दर्द मुझमे, कुछ थे आँसू आ मिले, अब समझ आया कि क्यूँ मेरा लहू गाढ़ा हुआ.. वो पनप सकता था क्या अपनी…
तेज़ बारिश से पूरी तरह तर होने के बावजूद मैं अपनी बाईक लेकर अपने ऑफिस से घर जा रहा था । सड़क पर गहरे हो…
‘अब फकत एक ही चारा है बस दवा के सिवा, कोई सुनता, न सुनेगा यहाँ खुदा के सिवा.. खुदा के मुल्क में इक बस इसी…
‘मैं अपनी याद तेरे दामन से समेट लूँ तो मगर, तेरे हिस्से की कोई खुशी न साथ आ जाए..’ – प्रयाग
‘ज़िंंदगी को इतनी हसरत से नही देखा कभी, जितनी तेरा साथ पाने की है मुझमे आरज़ू..’ – प्रयाग
तुम कुछ बोलो ना बोलो, पर मुद्दे सारे सुलझ गए, सुनो देश के ग़द्दारों तुम गलत जगह पर उलझ गए । है तकलीफ तुम्हे ये…
‘बुझा गया है कोई, मैं चिराग था पहले, जो जगह आज बंज़र है, बाग था पहले.. बदल ली करवट कुछ इस कदर तकदीर ने, डरता…
‘उन्वान-ए-किताब-ए-ज़िन्दगी था रखा कुछ और, लिखा कुछ और, छपा कुछ और, दिखा कुछ और, पढ़ा कुछ और..’ – प्रयाग मायने : उन्वान ए किताब ए…
‘बेवजह ही है मुझसे जुड़ी हर उम्मीद तेरी, क्या तेरे दिलो-ज़ेहन में खयाल नही उठता.. मैं छोड़ आया हूँ अभी-अभी समंदर को, तेरी झील का…
‘मैं गुनहगार ही सही उनका फकत लेकिन, मैं शाद हूँ कि किसी तरह उनका तो हूँ..’ – प्रयाग मायने : फकत – सिर्फ शाद –…
‘कैसे रोकेगा मेरे इरादों को ये उफान-ए-समंदर, आतिश को दबाए रखा है आगज़नी के लिए..’ – प्रयाग मायने : उफान-ए-समंदर – समुद्र का उफान आतिश…
‘उँगली उठा तो दी हमने, पर साबित क्या करेंगे, वो तमीज़दार भी इतने हैं कि पत्थर खुद नही फेंकते..’ – प्रयाग
‘वो मेरी बेबसी का इश्तिहार देने निकले हैं, बतौर वजह सुर्खियों में कहीं खुद भी न आ जाऐं वो..’ – प्रयाग मायने : बतौर वजह…
‘न देखा उसने इक दफा भी कभी, के किन तूफानों से घिर गया हूँ मैं.. उसकी शिकायत है आज भी वही मुझसे, कि अपने वादों…
‘आओ कुछ बेहतर करते हैं.. कुछ बाहर जग की परिधि में, कुछ अपने भीतर करते हैं.. आओ कुछ बेहतर करते हैं.. आओ कुछ बेहतर करते…
‘हर आग से वाकिफ हूँ मैं, हर वक्त मैं जला हूँ, वो क्या जलाएगी मुझे, मैं आग में पला हूँ..’ – प्रयाग
‘दे दे कोई तदबीर मुझे हरकत में रहने की, मैं उसके तसव्वुर में तस्वीर हुआ जाता हूँ..’ – प्रयाग मायने : तदबीर – तरकीब/उपाय तसव्वुर…
‘मेरी वफाओं का खुलकर सिला दिया उसने, न रखा एक भी, हर खत जला दिया उसने.. दूर होने का फैसला क्या खुद तुम्हारा है ?…
‘मेरी वफाओं का खुलकर सिला दिया उसने, न रखा एक भी, हर खत जला दिया उसने.. दूर होने का फैसला क्या खुद तुम्हारा है ?…
‘कैसी सड़क हो गई है इतने गढ्ढे हैं कि समझ नही आ रहा कि गाड़ी सड़क पर चला रहा हूँ या सर्कस में, मेरा इतना…
‘आगाह किये देता हूँ मैं ज़माने की ठोकर को, मैं ज़मीं पे पड़ा पत्थर नही, ज़मीं में गढ़ा पत्थर हूँ..’ – प्रयाग
‘यही हकीकत है मेरी, मैं उम्मीद-ए-जहाँ का पुलिंदा था, मैं तब तक मरता रहा, जब तक कि मैं ज़िंदा था..’ – प्रयाग मायने : उम्मीद…
‘जा चुका होता मैं कब का इस जहाँ से, किसी से किये वादे, गर अधूरे नही होते.. वो किया करते हैं औरों के ख्वाब मुकम्मल,…
‘वो हादसा के सलीके से जिसका ज़िक्र नही, और कुछ लोग थे जो सुर्खियों में आते रहे.. मदद के वास्ते लाज़िम थे कई हाथ मगर,…
‘फितरत-ओ-आदत की बात है के मोहब्बत, उनसे की न गई, हमसे भुलाई न गई..’ – प्रयाग मायने : फितरत ओ आदत – फितरत और आदत
‘निकलती है नेक मकसद को, मुकम्मल वो दुआ होती है, नही होती दुआ अकेली कभी, साथ क़ुव्वते-दुआ होती है..’ – प्रयाग मायने : मुकम्मल –…
Please confirm you want to block this member.
You will no longer be able to:
Please note: This action will also remove this member from your connections and send a report to the site admin. Please allow a few minutes for this process to complete.