हिरण सा मन बना लूँ

जुबान से मेरी
किसी का दिल न दुखे
न कभी लेखनी यह,
ठेस के भाव लिखे।
न निशाना हो मेरा
कहीं पर व्यक्तिगत सा
न कोई बात बोलूं
दिखूँ जो व्यक्तिगत सा।
चाह इतनी रखूं कि
दिखे जो अनगिनत सी,
भूल जाऊँ वो टूटन
जो उपज थी विगत की।
हिरण सा मन बना लूँ
दिखे चंचल सा बाहर
मगर भीतर कलेजा
शेर का अब लगा लूँ।
धीर-गंभीर बैठूँ
नहीं विचलित कहीं पर,
कदम रौखड़ जमीं
आँख होंगी नमी पर।
भटक जाऊँ अगर तो
वहां पहुँचूं भटकर
जहाँ मन ईश मन्दिर
खड़ा बिंदास डटकर।
लिखूं वो सब मुझे जो
ले चले प्रेम पथ पर,
मिटा दूँ सब गलत वह
उगे जो द्वेष पथ पर।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. ….हिरण सा मन बना लूँ
    दिखे चंचल सा बाहर
    मगर भीतर कलेजा
    शेर का अब लगा लूँ।
    ……..लिखूं वो सब मुझे जो
    ले चले प्रेम पथ पर,
    मिटा दूँ सब गलत वह
    उगे जो द्वेष पथ पर।
    ………….. कवि सतीश जी की अत्यंत सुंदर रचना । शिल्प और भाव का सौंदर्य अनुपम है । समाज को बहुत सुंदर साहित्य परोसते हुए एक अद्भुत काव्य रचना

  2. जुबान से मेरी
    किसी का दिल न दुखे
    न कभी लेखनी यह,
    ठेस के भाव लिखे।
    न निशाना हो मेरा
    कहीं पर व्यक्तिगत सा
    न कोई बात बोलूं
    दिखूँ जो व्यक्तिगत सा।

    Nice line

+

New Report

Close