ज़िन्दगी जीने की वजह कोई।

ढूंढ रहे है जिंदगी जीने की वजह कोई।
तुम्हारी यादें न हो है ऐसी जगह कोई।।
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हक़ीक़त बयान करना अगर जुर्म है गर।
फिर बोल दो हमारे लिए भी सजा कोई।।
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दर ब दर घुमे है न जानें किस जुस्तजू में।
जबकि न कोई मंजिल है न है पता कोई।।
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इक जख़्म हरा होता रहा यादों के सहारे।
जिसके लिये न मरहम है,न है दवा कोई।।
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सूख गई अरमानो की फ़सल बिना बारिश के।
कब समझा आखिर मौसमो की अदा कोई।।
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सूखे पत्तो की तरह बिछे थे ख्वाब राहों में।
कही है नई महफ़िले तो कही है जुदा कोई।।
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सबब एक नहीं थे साहिल मेरी मौत के लिए।
वैसे भी मौत से कहाँ आज तक बचा कोई।।
@@@@RK@@@@

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