•••और रह गया वक्त की खूंटी पर टंगकर”
कुछ सिसकिंयाँ सिमट कर
बिखर गईं
फिर से तुम्हारी याद आ गई
जब रोया करते थे
तुम्हारे कंधे पर सिर रखकर
वो पल अब कहाँ खो गये ??
बेशुमार दौलत है अपने पास आज
पर वो फुर्सत के पल कहाँ गये ??
आज बार-बार याद आ रहा है
मेरा चीखना चिल्लाना
तुम्हारा घुटने टेक कर मनाना
पर सब रह गया बस एक
याद बन कर और
रह गया ‘वक्त की खूंटी पर टंगकर ||
बेशुमार दौलत है अपने पास आज
पर वो फुर्सत के पल कहाँ गये
बहुत सुंदर रचना
Present time is beautiful
क्या बात है कितने आराम से आपने कह दिया
°°°°°°और रह गया वक्त खूंटी पर टांग कर”
यूं लगा के जैसे आप कोई कहानी सुना रही है…
बहुत ही रहस्यत्मक ढ़ग से आपने कविता को लिखा है।
जिंदगी की कई सच्चाईयों को आपने अपनी कविता में जगह दी है।