4 Liner#1
मिलती गर इज़ाज़त, थोड़ी सी मोहलत मांग लेता |
पिंजरे की दाल छोड़कर, आसमानों की भांग लेता ||
चल पड़ता जहाँ बढ़ते कदम, मुड़ता बस नज़र की ओर |
उतार देता थैला काँधे से , नौकरी खूंटी पर टांग देता ||
मिलती गर इज़ाज़त, थोड़ी सी मोहलत मांग लेता |
पिंजरे की दाल छोड़कर, आसमानों की भांग लेता ||
चल पड़ता जहाँ बढ़ते कदम, मुड़ता बस नज़र की ओर |
उतार देता थैला काँधे से , नौकरी खूंटी पर टांग देता ||
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umda kavya Vikas ji
nice lines
Thanks Mohit ji and Kapil ji…
Good
मिलती गर इज़ाज़त, थोड़ी सी मोहलत मांग लेता |
पिंजरे की दाल छोड़कर, आसमानों की भांग लेता ||
कितनी सुन्दर पंक्तियाँ लिखी हैं आपने