~~”मजदुर”~~
~~”मजदुर”~~
..वह ‘सृजनकर्ता’ है ‘दुख’ सहके भी ‘सुख’ बांटता है..
..वो ‘मजे’ में ‘चूर’ हैं, बस इसलिए ‘मग़रूर’ हैं..
..हम ‘मजे’ से ‘दूर’ हैं, बस इसलिए ‘मजदूर’ हैं..
..सेतु , नेहेरे , बांध उसके, ‘श्रम’ से ही ‘साकार’ है..
..’देश’ की ‘सम्पन्नता’ का बस वही ‘आधार’ है..
..चाहें लग जाए ‘सावन’, या चल रहा हो ‘वसंत’..
..पर रेहता है हमेशा , ‘पतझड़’ की तरह ‘झरता’ हुआ..
….✒…01/05….
behatreen!!