हालत
कौन कहता है के मेरे होने से एक शहर बस्ता है,
जहाँ निकल जाऊं मुझे मिलता एक बन्द रस्ता है,
सांस मुझे आती नहीं या हवाओं ने रुख बदला है,
महसूस करो तो ज़रा सच में मेरी हालत खस्ता है,
दूर मीलों न जाओ आस-पास ही दौड़ाओ नज़रें,
देखकर क्यों मुझे अकेले खड़ा हर इन्सां हंस्ता है,
निकल पाती ही नहीं कहीं मैं घर से चाहूँ जितना,
डर का मेरे खुले बाज़ार में लगाता मोल सस्ता है,
मांगने पर उठ बढ़ता नहीं कोई हाथ भी मेरी तरह,
जब नोचना हो बेशर्म बेख़ौफ़ आके मुझमें फंस्ता है।।
राही अंजाना
वाह बहुत सुन्दर रचना
धन्यवाद
Wah
धन्य
Nice
आभार
Good one
Nice
Good