Ma baba ki dulari wo thi

मां बाबा की दुलारी वो थी,
नन्हे कदम जब पडे थे उसके.
आंगन में खुशियां छाई थी,
किलकारियां घर में गूंजी थी,
पायल की घुघरू की खनखन से,
सारा घर आंगन गुंजा था,
देखते ही देखते जाने कब,
वो बड़ी हो गई थी अब,
मां बाबा के मन में चिंता छाई थी तब,
पराई होने की बारी थी उसकी अब.
उसके मन ने कहा था तब,
मैं हूं तेरे जिगर का टुकड़ा बाबा,
मुझको अपने से दूर न करो,
रहने दो मुझे अपने आंगन में,
मैं तेरी ही परछाई हूं बाबा,
ममता से मुझको दूर न करो,
मैं तेरी ही बगिया की फूल हूं |

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