ना…री – कविता
ना…री तू बिलखना नहीं
किसी सहारे को अब तरसना नहीं
तू स्वयंसिद्ध और बलवान है
नहीं महत्वहीन तू खुद सबकी पहचान है
सशक्त है तू नाहक ही छवि तेरी कमज़ोर है
पर तेरे जोश का हर कोई सानी है
सबल ममतामयी गुण तुझमें
चेहरा अद्भुत जैसे माँ शक्ति भवानी है
आदिकाल से तू है इतिहास रचयिता
हर जीत में भी सहभागी है
परचम लहराए हैं तूने भी
अनमोल बड़ी तू अति प्रभावशाली है
तेरी क्षमता का जिनको ज्ञान नहीं
वो भी इक दिन नतमस्तक होगा
ये सुन्दर सृष्टि के सृजन का सपना
आज नहीं तो कल पूरा होगा
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से
वाह, ना… री, बहुत अच्छे
Shukriya 🙏🏼😊
Sunder
Shukriya 🙏🏼😊
सुन्दर रचना,
नया प्रयोग 👌👌👌
Shukriya 🙏🏼
वेलकम
नारी पर बहुत ही सुंदर भाव व्यक्त किए हैं आपने
बहुत सुंदर पंक्तियां
जितनी तारीफ की जाए उतनी कम