बढ़ता चल

सफर बहुत लम्बा
तूफानों से घिरा था
इरादा मेरा लेकिन
पक्का बड़ा था

बड़ी मज़बूती से पकड़ी
थी जो पतवार अपनी
मेरा ज़ज़्बा मेरी मुश्किलों के
आगे जो खड़ा था

लौटना न मुसाफिर
बस कदम तू बढ़ाना
आयें जो भी मुश्किल
खुल कर तू भिड़ जाना

कोई ज़ोर नहीं चलता
गर मज़बूत हों इरादे
हारा वही है बस
जो मुश्किलों से दूर भागे
©अनीता शर्मा
अभिव्यक्ति बस दिल से

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