Categories: मुक्तक
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प्रेम का संदेश दें
अपनी खुशियों पर रहें खुश दूसरों से क्यों भिड़ें, बात छोटी को बड़ी कर पशु सरीखे क्यों लड़ें। जिन्दगी जीनी सभी ने क्यों किसी को…
चिंता न कर तू चिंता चिता है
चिंता में डूबे हुए ओ मनुज सुन चिंता न कर तू चिंता चिता है। चिंता से होता नहीं लाभ कुछ भी, होता है वो जो…
रोज़ होती रही तेरे वादों की बरसात
रोज़ होती रही तेरे वादों की बरसात कमाल ये के कभी हम भीग नहीं पाएं तंगदिल है मेरा या तेरा सिलसिला क़ाफ़िर न तुम समझे…
चलो थोड़ा जादू करते हैं
चलो थोड़ा जादू करते हैं जनता के दिल को छूती हुई एक कविता लिखते हैं झोपड़ियों में पल रही भूख से टकराते हैं छोटे छोटे…
तुम शायद जान नहीं पाए
*एक अंश तुम्हारा मुझमें है, तुम शायद जान नही पाए। हर पल मैं तुममे दिखता हूँ, तुम शायद मान नहीं पाए।।* अब कैसे मैं तुमको…
यह आप किसके लिए कह रहे हैं भाई?
भावार्थ समझाइये।
कवि जिसे चाह कर भी अपना नहीं बना सके और दूसरा चाह कर भी कवि का न हो सके तो चिंतित संवेदना खुद पर ही हावी होकर जितना साथ निभा सके कविता से ही साथ देने की प्रतिबद्धता है।
जी, थैंक्स
साथ ही बेरोजगारी, निराशा से घिरे आम जन को चिंता न करने और कविता के माध्यम से उसकी आवाज उठाने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की गई है।
सही कहा आपने
बहुत सुंदर भाव
सादर धन्यवाद जी
Wah
सादर धन्यवाद जी
बहुत खूब
Thank you
Sundar
Thanks