बरसात का वो दिन..

तेज़ बारिश से पूरी तरह तर होने के बावजूद मैं अपनी बाईक लेकर अपने ऑफिस से घर जा रहा था । सड़क पर गहरे हो चुके गड्ढों से जैसे ही मुलाकात हुई तो ऐसा लगा कि शायद सरकार हमें यह बताना चाहती हो कि इस धरती से नीचे भी एक दुनियां है जिसे पाताल लोक कहते हैं, खैर मैंने इतना सोचा ही था कि मेरी गाड़ी किसी गड्ढे में जाकर अनियंत्रित होकर गिर गई । पहले तो सहज मानव स्वभाव वश मैंने भी यहाँ-वहाँ देखकर यह तसल्ली करनी चाही कि किसी ने मुझे गिरते हुए देख न लिया हो । जब मैं पूरी तरह से आश्वस्त हो गया कि मुझे किसी ने गिरते हुए नही देखा तो उसके ठीक अगले ही पल इस बात का अफसोस मुझे सताने लगा कि चलो गिरते हुए किसी ने नही देखा, तो न सही, लेकिन गिरने के बाद तो देखना चाहिए था, अब तक कोई मुझे उठाने तक नही आया, यह आस मुझे इसलिये भी थी क्योंकि मेरा पैर चोटिल हो गया था और मुझसे खुद उठते नही बन रहा था । तभी सामने से कुछ लोग मुझे आते हुए दिखे, उनकी यह मानवता देखकर मन में यह भाव उमड़ आया कि लोग चाहें जो कहें लेकिन इस दुनियां में इंसानियत अभी मरी नही है । अरे.. मगर ये क्या, तेज़ रफ्तार से मेरी तरफ आते हुए वो लोग सहसा मेरे पास से होते हुए सड़क के दूसरी तरफ निकल गए, भला ये कैसी मानवता ? यहाँ आदमी गिरा पड़ा है और कोई उठाने वाला भी नही ।
सड़क के दूसरी तरफ लोगों की भीड़ जमा हो गई थी मैंने भी कौतूहल वश यह जानना चाहा कि आखिर माजरा क्या है और यह जानने के लिए अपनी गर्दन को प्रत्येक कोण में घुमाकर यह देखने की कोशिश की कि कहीं वहाँ कोई बुजुर्ग आदमी तो नही गिर गया, तभी ये सब लोग मुझे छोड़ उन्हें उठाने और सहारा देने में लगे हों । तभी लोगों के जमावड़े के बीच बने झरोखे से मुझे जो दिखाई दिया वो अविस्मरणीय था, सड़क के दूसरी तरफ लोगों की जो भीड़ जमा थी वो इसलिए थी कि एक खूबसूरत लड़की की स्कूटी स्टार्ट नही हो रही थी और वहाँ जितने भी लोग थे सब बारी-बारी अपना हुनर आज़मा रहे थे । तभी मुझे यह समझ आया कि हमारे देश में हुनर की कमी नही है किसी लड़की की स्कूटी खराब हो जाए तो हर दूसरा शख्स थोड़ी देर के लिए मैकेनिकल इंजीनियर बन जाता है । लोगों की भारी मशक्कत के बाद उस लड़की की स्कूटी स्टार्ट हो जाती है और वो अपने गंतव्य को चली जाती है लेकिन कुछ लोग अब तक उसके जाने के बाद भी न जाने कौन से सुकून के एहसास से सराबोर थे जो अब तक वहीं खड़े थे तभी अचानक मेरे अंदर का कवि जाग उठता है और मेरे मन से शब्दों के बाण निकलने को आतुर हो उठते हैं..

‘के अब ज़मीन पर उतर जाओ कमबख्तों..
चली गई वो अब तो घर जाओ कमबख्तों..’

वो लोग जो मेरी तरफ से, मेरे पास से होकर सड़क के दूसरी तरफ गए थे वो वापस इसी तरफ आ रहे थे अब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी ।
अरे भाई साहब कैसे गिर गए ? मुझे उठाते हुए उन्होंने पूछा..
बस अभी अभी गिरा हूँ गाड़ी अनियंत्रित हो गई । मैंने जवाब दिया ।
‘सड़क ही ऐसी है भगवान बचाए ऐसी सड़कों पर तो..’ उन्होंने खेद जताते हुए कहा..
‘सही कहा आपने, भगवान न करे कि आपके साथ कभी ऐसा हो लेकिन अगर हो, तो मेरी ये दुआ है कि ठीक उसी वक्त सड़क के दूसरी तरफ किसी खूबसूरत लड़की की स्कूटी स्टार्ट न हो’
वो लोग मेरी बातों का मतलब समझ गए थे लेकिन अब उनके पास मेरी इस बात का कोई जवाब नही था..

– प्रयाग

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Responses

    1. धन्यवाद यह एक सच्ची घटना है जो मेरे एक परिचित के साथ घटित हुई थी जिसे मैंने हास्य व्यग्य की शैली में लिखने की कोशिश की है

  1. घटना को बहुत अच्छे दंग से लिखा है।कविता सुनकर /पढ़कर कोई भी अपनी हंसी ना रोक पायेगा।

  2. वैसे, पुरुषों को सदैव ही हम स्त्रियों से ही क्यूं जलन होती है।
    यदि कोई मदद कर से तो भी टिप्पणी और यदि कोई मदद ना करे ,तो बेचारी अबला….

    1. हा हा हा अरे ऐसी कोई बात नही है गीता जी । ये तो बस व्यंग्य था स्त्रियाँ कई जगह सच में विशिष्ट होती हैं उन्हें अगर ज्यादा अटेंशन मिलता भी है तो वो अटेंशन देने वाले भी तो हम ही होते हैं न..ऐसी कोई जलन की संभावना नही है इसमें..बस कोई अगर कोई पुरूष रास्ते में गिरा पड़ा हो तो लोग उसे उठा लें बस..☺️☺️

    1. ये बुरा मान जाने वाला वर्ड तो मेरे शब्दकोश में है ही नही आप बेधड़क बेफिक्र होकर अपनी प्रतिक्रिया दिया करें

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