लाशों की सेज पर
सोची समझी चाल से, शायद जानबूझकर
पार्टियां वे कर रहे, विश्व को मौत में ढकेल कर।
जिस वुहान से इसकी शुरुआत हुई
इससे निजात की, तैयारी थी क्या कर रखी।
मास्क को दे तिलांजली, दुनिया का नुकसान कर
हजारों मासूम लोग जा रहे, काल का ग्रास बन ।
लाशों की सेज बिछा चैन वे अलाप रहे
लद्दाख पे आके, असलियत दिखा रहे ।
जब सब कोई सहमा सा, दुआ है कर रहा
तब वे अंधान्ध हो सीमा पर, चील सा मंडरा रहा।
जमीर जिनमें थी नहीं, जिनकी नियत भी खोटी है
औकात उनकी बताने को तैयार अपनी बोटी-बोटी है ।
यथार्थ पर आधारित बहुत सुन्दर रचना, बहुत खूब
सादर आभार
भारत-चीन के राजनैतिक मुद्दों से जुड़ी सुन्दर कविता
सादर आभार
यथार्थ भाव
बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर काव्य
बहुत बहुत धन्यवाद
यथार्थपरक
सादर आभार प्रज्ञा जी