“मेरी मुस्कान पर ना जाओ दोस्तों”
मेरे होंठों की मुस्कान पर
ना जाओ दोस्तों!
ये तो मेरे यार की तरह फरेबी है!
मेरे आँसू हैं मेरी असली पहचान
जो बंद कमरे निकलते हैं
कभी तकिये से आकर पूँछों
हम उसे कितना भिगोते हैं!!
सिसकियाँ सुन-सुनकर मेरे
कमरे की दीवारों में दरारे
आ गई हैं
तन्हाई से पूँछों हम कितनी
बातें करते हैं
चाँद देखते हुए गुजार देते हैं
रातें
जुगनू पकड़कर हम
मुठ्ठियों में बंद करते हैं
सितारों से पूँछों कभी हम
उन्हें कितनी बार गिनते हैं…
मेरी मुस्कान पर ना जाओ दोस्तों !!
Bhut khub
Thanks
Nice 👌
Thanks
वाह क्या कहने।
धन्यवाद
कभी तकिये से आकर पूँछों
हम उसे कितना भिगोते हैं!!
सिसकियाँ सुन-सुनकर मेरे
कमरे की दीवारों में दरारे
आ गई हैं
अत्यंत गहरी और मार्मिक संवेदना।
बहुत खूब
धन्यवाद
क्या ख़ूब कहा
धन्यवाद
Heart touching, very nice
Thanks
Nice poetry
Tq
अतिसुंदर भाव
Tq
Tq