देख लो माँ-बाप को
ढूढ़ते हैं रब को हम
मंदिरों, गिरिजाघरों में
भूल जाते हैं कि ईश्वर
हैं स्वयं अपने घरों में।
देख लो माँ-बाप को
ईश्वर दिखेगा आपको
बस जरा सच्ची नजर हो
रब दिखेगा आपको।
जो घरों में कष्ट देते हैं
ज़ईफ़ मां-बाप को,
वे नहीं ईश्वर को पाते
हैं कमाते पाप को।
रब को पाना है तो तुम
माँ-बाप की सेवा करो
वे ही सच में ईश हैं
उनकी तरफ देखा करो।
बहुत खूब, वाह
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर प्रेरक भाव आज के युवाओं के लिए।
सादर धन्यवाद, नमस्कार
माता पिता की सेवा भाव सबसे बड़ी भावना है ।
“भूल जाते हैं कि ईश्वर, है स्वयं अपने घरों में” ,जो लोग माता पिता का आदर नहीं करते हैं, उन लोगों के लिए बहुत अच्छी सीख देती हुई बहुत शानदार रचना ।लेखनी को एक प्रणाम तो बनता है ,इस रचना के लिए ।
आपके द्वारा की गई इस बेहतरीन समीक्षा के लिए आभार व धन्यवाद शब्द भी कम पड़ रहे हैं। सादर अभिवादन। आपकी समीक्षा कला अद्भुत है।
बहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏
बहुत उम्दा लेखन, मां-बाप ही ईश्वर हैं, वाह
बहुत बहुत धन्यवाद जी
बहुत ही सुन्दर पाण्डेय जी
Thank you ji
Wow, good one
Thank you