जरा सा गौर से देखो

तुम्हारे हाथ में अपनत्व की
जो कुछ लकीरें हैं
उन्हीं में एक मैं भी हूँ
जरा सा गौर से देखो।
आईना सामने रख
खुद की नजरों में जरा देखो,
मिलूंगा नीलिमा में तुम
जरा सा गौर से देखो।
कहीं राहों में जब मुश्किल
खड़ी हो सामने कोई,
मिलूंगा साथ देता तुम
जरा सा गौर से देखो।
हर खुशी हो तुम्हारी बस
मुझे इतनी ही अभिलाषा
मित्र हूँ एक अदना सा
जरा सा गौर से देखो।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. दोस्ती पर बहुत ही शानदार कविता लिखी है सर। “कहीं राहों में जब मुश्किल खड़ी हो सामने कोई, मिलूंगा साथ देता तुम, ज़रा सा गौर से देखो ” दोस्त का साथ देने की खूबसूरत भावनाओ को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया है ।आपकी लेखनी से बहुत ही सुन्दर साहित्य निकला है ।लेखनी को अभिवादन ।

+

New Report

Close