ज़िन्दगी क्या है..

जन्म लेने पर बंटी मिठाई,
श्राद्ध हुआ तो खीर खिलाई
जन्म की मिठाई से,
शुरू हुआ एक मेल
श्राद्ध पर आ कर,
ख़त्म हुआ वो खेल
और विडम्बना ये है कि,
जिसके नाम का मीठा आता है,
दोनों ही मौकों पर,
वो ही ना खा पाता है
ज़िन्दगी क्या है……..
आकर नहाया…….,…
और नहा कर चल दिया
इन दोनों ही स्नानों के बीच…
कोई ज़िन्दगी जीता है और
कोई ज़िन्दगी मरता है….

*****✍️गीता

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Responses

  1. आपने समाने लाकर रख दिया

    मानव जन्म का उत्सव,
    नहीं समझ पाता,
    मृत्यु भोज
    नहीं चख पाता,
    बड़े अजीब है
    संस्कार जमाने के,
    ✍🤔👌👌👌👌

    1. अरे वाह ऋषि जी कविता भी अच्छी लिखी और समीक्षा भी । बहुत बहुत धन्यवाद “आपने समाने लाकर रख दिया” यहां शायद आपसे आपने के बाद “सच” शब्द गलती से छूट गया है .वैसे बाकी बहुत सुंदर समीक्षा है Thank you,keep it up .

  2. कवि गीता जी आपकी इस कविता के भाव बहुत ही जबरदस्त हैं, दर्शन है, वास्तविकता है, आपने बेहतरीन प्रस्तुति दी है। इतने स्तरीय रचनाकार को सदैव लिखते रहना चाहिए। वाह। सीधी सपाट भाषा में जीवन की वास्तविकता को सामने लाना लाजवाब है।

    1. इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी ।आप जैसे उच्च कोटि के कवियों का प्रोत्साहन मिलता रहे तो लिखते रहेंगे सर ।कवि को प्रोत्साहन और प्रेरणा की बहुत आवश्यकता होती है । बहुत बहुत आभार सर 🙏

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