चाँद अलसाया हुआ था !!

चाँद ने गोद में जाकर
हिमालय की
बिछाया बिस्तर सोने के लिए
तभी एक टिमटिमाता तारा
आकर रोने लगा
कहने लगा ऐ चाँद !
आज कोई तेरा इन्तजार कर रहा है
भूखा प्यासा रहकर
उपवास कर रहा है
तू नहीं गया गर तो वह
छत पर ही बैठा रह जाएगा
किसी की रातों का चाँद
तेरे इन्तजार में मर जाएगा
चाँद अलसाया हुआ था !!
थोड़ा इतराया हुआ था
पर जब देखा उसने जमीं पर
हजारों चाँदनी
अपनी छत पर ही खड़ी हैं
तब उसे कुछ होश आया
आज तो करवाचौथ की
घड़ी है
भागा सरपट चाँद फिर
नंगे ही पैरों आ गया
तारा भी फिर खुश हुआ
प्रज्ञा’ ने जब पूरा व्रत किया ||

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