दीप जलाओ
दीप जलाओ और बस दीप ही जलाओ
पटाखे जलाकर प्रकृति को मत चिढ़ाओ
मन के अँधेरे को मिटाकर समझ का दीपक जलाना
मकसद यही है दिवाली का जीवन को रौशनमय बनाना
शांत करता वातावरण स्वच्छ होता जाता मानस मन
निर्मल शांत रात्रि को तुम कोलाहल की न भेंट चढ़ाओ
प्यार से जलते हुए दीपक साथ हमें रहना सिखाते
सुख की छांव हो या दुःख की तपन एकता को बढ़ाते
पटाखे की कोलाहल से शांत मन भी खीझ जाते
प्रदूषित हुई धरा को तुम और प्रदुषण से न पटाओ
सुन्दर
अतिसुंदर भाव
Beautiful poem