“गुलमोहर की मोहर”
“गुलमोहर का पुष्प”
अति मनमोहक है
सुगंध इसकी
अद्धभुत है
इसकी जड़ें मिट्टी को
चारों ओर से जकड़े हैं
मानों जैसे हाथों में
वक्त पकड़े हैं
रात्रि की उनींदी आँखों में
कुछ गहरे सपने हैं
चाँदनी की चादर में
कुछ दाग गहरे हैं
गुलमोहर की मोहर है
हृदय पर ऐसे छपी
जैसे तितलियों के पंख से
रंग बिखरे हैं
कोयल की कूँक से है
मन- मयूर नाचता
रितुओं के परिवर्तन में
कुछ राज गहरे हैं…
अति, अतिसुंदर भाव
आभार
आपकी समीक्षा ने मन प्रसन्न कर दिया
सुन्दर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी