Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…
फ़िर बतलाओ जश्न मनाऊँ मैं कैसी आजादी का
आतंकी की महिमा मंडित मंदिर और शिवाले खंडित पशु प्रेमी की होड़ है फ़िर भी बोटी चाट रहे हैं पंडित भ्रष्टों को मिलती है गोदी…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था…
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था, बंद लतीफों की खड़े -खड़े मल्हार देख रहा था, सोचा था तंग आकर लिखूंगा ये…
सर्दियों की धूप-सी
सर्दियों की धूप सी लग रही है यह घड़ी यह जो नया एहसास है अजनबी है अजनबी सुना है मन वीरान है मेरा जहां आज…
निर्धन की सर्दियों को दर्शाती हुई कवि प्रज्ञा जी मार्मिक अभिव्यक्ति
धन्यवाद
अति, अतिसुंदर भाव
धन्यवाद
आपने आखिर वास्तविक जीवन से परिचय करवा ही दिया। बहुत ही सुन्दर रचना प्रस्तुत किया है प्रज्ञा जी।
जी सर, हर कवि की तरह वास्तविकता से परिचय कराना भी मेरा फर्ज है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद