पायल को मीठी छम सी
बातें बना रहे हो
बेकार में अनेकों
चाहत कहाँ है गुम सी
पायल की मीठी छम सी।
डग-मग कदम चले हैं
जिस ओर हम चले हैं
नजरों का फर्क क्यों है
मन से तो हम भले हैं।
चारों तरह सवेरा
मन में घिरा अंधेरा,
उग आई क्यों निराशा
खुद से ही खुद छले हैं।
सोते समय जगे हैं
जगते समय हैं सोये
पाया नहीं है पाना
अश्कों में हम गले हैं।
तुम भी रहे हो बहका
समझे हो क्यों खिलौना
मुस्का दो आज फिर से
मैं तो हूँ, अब कहो ना।
बहुत ख़ूब, अति सुंदर कविता
बहुत सुंदर रचना
तुम भी रहे हो बहका
समझे हो क्यों खिलौना
मुस्का दो आज फिर से
मैं तो हूँ, अब कहो ना।
—– उलाहना से अलंकृत बहुत ही खूबसूरत रचना, भाषा व शिल्प का सुन्दर तालमेल। वाह