वचन
जब कभी भी टूटे ये तंद्रा तुम्हारी,
जब लगे कि हैं तुम्हारे हाथ खाली!
जब न सूझे ज़िन्दगी में राह तुमको,
जब लगे कि छलते आये हो स्वयं को!
जब भरोसा उठने लगे संसार से ,
जब मिलें दुत्कार हर एक द्वार से!
जग करे परिहास और कीचड़ उछाले,
व्यंग्य के जब बाण सम्भले न सम्भाले!
ईश्वर करे जब अनसुना तुम्हारे रुदन को,
जब लगे वो बैठा है मूंदे नयन को!
न बिखरना, न किसी को दोष देना,
मेरे दामन में स्वयं को सौंप देना..!!
अपने नयनों में प्रणय के दीप बाले,
मैं मिलूँगी तब भी तुम्हें बाहें पसारे!!
©अनु उर्मिल’अनुवाद’
अपने नयनों में प्रणय के दीप बाले,
मैं मिलूँगी तब भी तुम्हें बाहें पसारे!!
________बहुत ही कोमल भावनाओं के साथ और समर्पण का भाव लिए बहुत सुंदर कविता है सखी। उच्च स्तरीय लेखन
बहुत खूब
धन्यवाद सखि..क्षमा कीजियेगा कुछ दिनों से आपकी प्रतिक्रियाओं का जवाब नहीं दे पाई 🙏🙂
No problem dear😊
बहुत खूब
Awesome poem