तरस आता है

कविता- तरस आता है
——————————————
हे गरीबी
तुझ पर –
तरस आता है,
क्या बिगाड़ तू पाई इंसान का|
चाहे तू और
बर्बाद कर दे,
चाहे तू और
भिखारी कर दे,
जो इच्छा हो
तेरी आज कर दे,
कंगालो की
तरह उसे बना दे,
बीमारों की
तरह उसे बना दे,
एक दिन ठीक होकर
काम पर जाएगा
बोल गरीबी क्या बिगाड़ पाई तू इंसान का|
आज उसे
मिट्टी में मिला दे,
चाहे उसे
रोड पर कर दे,
चाहे उसे
खेत में कर दे,
हां रोएगा-
छठ भर सही
पर सोएगा,
बोल गरीबी ,क्या बिगाड़ पाई तू इंसान का, सुबह-सुबह,
भीख मांगने जाएगा,
जो मिलेगा,
पकवान समझ खाएगा,
दाने दाने के लिए तरसे वह,
अस्तित्व के खातिर भटके वह,
लाख ठोकर मिले उसे,
सब के आगे हाथ फैलाता है,
दिन में उसे कुछ मिल जाता है,
गरीबी कुछ नहीं कर पाई तू,
किसी को मिटा नहीं पाई तू,
मरा होगा कोई भूख से अगर,
गरीबी तेरी यह कृपा नहीं,
मौत दुख सुख जीवन की सच्चाई है,
जब सोचता हूं तो ,
गरीबी तुझ पर तरस आता है,
गरीबी बचा अपने वजूद को,
कोई ठान ना ले
तुझे भगाने को,
अपने वंश से
तेरा अस्तित्व मिटाने को,
फिर कहां जाएगी तू,
उसके जीवन घर में स्थान नहीं पाएगी तू,
————————————————-
कवि ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close