कौन विछिप्त है??
रास्ते से एक विछिप्त महिला थी गुजर रही,
याकायक मेरी नजर पड़ी,
चली जा रही थी अपनी धुन में,
ना जाने क्या थी बड़बड़ा रही,
कुछ बच्चों ने उस पर पत्थर चलाएं,
कुछ बच्चे उसे चिल्लाकर डरा कर दौड़ाए,
बच्चे तो बच्चे ,संग बड़े बूढ़े भी उसके मजे उठाएं,
अचानक से एक महापुरुष उसकी मदद को नजर आए,
जो डांट कर बच्चों को भगाएं,
बोली उस विक्षिप्त महिला से,’खाना खाओगी’
बड़े ही ढंग से बाहर बिठाकर स्त्री को खाना खिलाएं,
वहीं दूसरी तरफ बनकर दलाल उस स्त्री की सौदेबाजी कराएं,
पर हम यह ना समझ पाए कि उस आदमी,ने न जाने कितने मुखौटे लगाए,
महापुरुष की महानता तो नजर आए,
पर उसकी दलाल गिरी समझ ना पाए,
आखिर विक्षिप्त हुई तो क्या हुआ,किसने अधिकार दिया कि उसके सौंदर्य पर दाग लगाएं,
वो स्त्री भी मानवता की भूखी प्यार और स्नेह चाहे,
यह कोई एक विछिप्त स्त्री की बात नहीं,
यह तो हो रहा हर गली हर शहर हर चौराहे,
पर समझ ना पाया उसका विछिप्त होना श्राप है,
क्या हम देख कर भी देखना नहीं चाहते,दानव रूपी दलाल का पाप है।।
–✍️एकता—
मार्मिक अभिव्यक्ति
मुखौटे के पीछे छुपी वास्तविकता का चित्रण,
सच कहा आपने पता नहीं कौन विछिप्त है,
वह महिला, पुरुष, या हम सभी।।
आपकी लेखनी जबरदस्त है
अतिसुंदर