फूला पलाश
झूमते पात फागुनी बयार में झूमते गात वासंती तानी खेतों पर चादर फूली सरसों दहके वन केसरिया वितान फूला पलाश महके वन महुआ से, अंबुआ से उपवन प्रीत के रंग भीगी गूजरिया रे पिया के संग १८.०३.२०२१ »
थमी हुई जिंदगी थमे हुए पल रुकती, चुकती सांसें उंगलियों की पोरों से छूटते रिश्तों के रेशमी धागे ठंडी, बेजान दीवारों से टकराते जीने, मरने, हंसने और रोने के पल कितना कुछ लिख गया गुज़रता साल गीली रेत पर कोई तो मौज हो मिटा जाए इस अनचाही तहरीर के निशान छू जाए आते साल का पहला क़दम कि ज़िंदगी बेख़ौफ फिसल आए बेजान दीवारों से फिर लिख जाए अपना नाम गीली रेत पर डॉ. अनू ३१.१२.२०२० »
राह भूल सी गई है हमको जो छोड़ आओ, तो बात बने मंज़िल की सरहद पर दीया जो छोड़ आओ, तो बात बने मेरी तेरी या उसकी बातें जो छोड़ आओ, तो बात बने ढाई आखर हर देहरी पर जो छोड़ आओ,तो बात बने »
सुनते आए हैं – अपनों का पर्व है होली मेरे आंगन जली होलिका मैं ही पंडित, मैं ही पूजा मैं ही कुंकुम, अक्षत औ” रॊली; सूनी गलियां, सूने गलियारे, सूने हैं आंगन सारे कौन संग मैं खेलूं होली! सुनते आए हैं – रंगों का पर्व है होली सुबह गुलाबी नहीं रही, अब सांझ नहीं सिंदूरी, धरती से रूठी हरियाली बेरंगा है अंबर भी; रंगों की थाल सजी, पर कौन रंग से खेलूं होली! सुनते आए हैं – खुशियों का पर्व है... »
माई री हम दोनों का दुःख साझा है.। तू कुम्हलाई तू मुरझाई ््अंग-अंग तेरे पड़ी बिवाई ्अंबर हारा दस दिश हारे सूख गया आंखों का पानी तू ही बतला तुझ पर रोऊं या बाबा की निर्जीव देह पर माई री हम दोनों का दुःख साझा है हर नव कोंपल में उस की सूरत हर डाली उसका ही कांधा है माई री बाबा का यह सच हम दोनों का ही साझा है हम दोनों का दुःख साझा है »