आफताब

बड़ा इतराता है जुगनू चांद की धूल को मल कर तेरी तारीफ तो बस इस रात ने की है बेपर्दा कर सके जो अख्ज की…

सीरत

कोई दिल दरबारे खास बने तो जान निछावर करते हैं हमें सूरत की प्रवाह नहीं सीरत से मोहब्बत करते हैं

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