सारा जीवन खो आया हूँ तब आया हूँ

August 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सारा जीवन खो आया हूँ तब आया हूँ
पाप पुण्य सब ढो आया हूँ तब आया हूँ
तुम पावन हो देवतुल्य, मैं तुम्हें समर्पित
कलुष हृदय का धो आया हूँ तब आया हूँ

आहुति देकर छल छंदों की प्रेम हवन में
तपकर जलकर विरह वेदना प्रेम अगन में
चिंतन की वेदी पर करके अश्रु आचमन
सुनो बहुत मैं रो आया हूँ तब आया हूँ

देह के आकर्षण हैं झूठे, जान चुका हूँ
नहीं तारती सदा जाहन्वी मान चुका हूँ
त्याग चुका हूँ कामुकता के बंधन सारे
मलिन पंक मैं धो आया हूँ तब आया हूँ

नहीं तुम्हें विश्वास यधपि इन संवादों का
नहीं प्रायश्चित मेरे भी सब अपराधों का
हूँ अनाथ में, नहीं जगत में कोई मेरा
मात्र तुम्हारा हो आया हूँ तब आया हूँ

जाने कितने जन्मों से मैं भाग रहा हूँ
अपने मस्तक का मैं खुद ही दाग रहा हूँ
जीवित हूँ मैं जाने कितने अंतरद्वन्द लिए
साथ मृत्यु के सो आया हूँ तब आया हूँ

व्यथित हृदय में वर्षो का संत्रास लिए
छला गया हूँ नेह की झूठी आस लिए
अर्क नेत्रज देकर मन के मृतसम मरुथल में
प्रेम बीज फिर बो आया हूँ तब आया हूँ

सारे जग में मैं ही हूँ ये मान मुझे था
मेरे जैसा कोई नहीं अज्ञान मुझे था
तुमको पाकर मैंने सत को भी पाया है
अपना ‘मैं’ खो कर आया हूँ तब आया हूँ

कहो अभी भी क्या मुझको ना अपनाओगी
मैं हूँ पापी कहकर मन को समझाओगी
दिव्य प्रेम है अमर आत्मिक मुझको तुमसे
निष्कलंक मैं हो आया हूँ तब आया हूँ

अभिवृत अक्षांश

तिरंगा

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं तिरंगा मात्र ध्वजा ये जय का उदघोष भी है
अमर शहीदों का प्रतीक बिस्मिल,भगत,बोस भी है

उत्साह रगों में भरता यह क़ुरबानी को तत्पर करता
हर देशभक्त हर राष्ट्रभक्त इस पर जीता इस पर मरता

जिससे रंग चुराकर प्रकृति माता का श्रृंगार करे
मान बढ़ाता वीरों का ये नित उनका सत्कार करे

धर्म क्रांति सद्भाव प्रेरणा का देता सन्देश हमें
प्राण न्योछवर करने का देता ये उद्देश्य तुम्हें

यह पटेल का साहस है और ये भगत की क़ुरबानी
स्वाभिमान राणा का इसमें है इसमें झांसीरानी

यह अखण्ड भारत है अपना यह ही हल्दीघाटी है
यह वीरों की अमर ज्योति है यह उनकी परिपाटी है

यह घाटी की गूंज है घायल सेना की हुंकार है ये
बर्बादी के नारों के जीवन पर भी धिक्कार है

जीने का अधिकार है तो प्राणों की आहुति है ये
है स्वतन्त्र बंधन भक्ति का धर्मचक्र की गति है ये⁠⁠⁠⁠

सारे जग से प्यारा तिरंगा शान हमारी है

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तीन रंगों से बना हुआ पहचान हमारी है
सारे जग से प्यारा तिरंगा शान हमारी है
आन, बान, सम्मान का सूचक
राष्ट्रनिष्ठा और ज्ञान का सूचक
प्रतीक ये अपने संविधान का
है अपने अभिमान का सूचक
सारे जग में न्यारा तिरंगा आन हमारी है
सारे जग से प्यारा तिरंगा शान हमारी है
अमर शहीदों की अभिलाषा
ये हर भारतवासी की आशा
गर्वित कर देता हर मनु को
दूर करे हर मन की निराशा
सारे जग में हमारा तिरंगा जान हमारी है
सारे जग से प्यारा तिरंगा शान हमारी है

अभिवृत अक्षांश

रण निश्चित हो तो डरना कैसा

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन शंकित हो तो बढ़ना कैसा
रण निश्चित हो तो डरना कैसा

जब मान लिया तो मान लिया
अब विरुद्ध चाहे स्वयं विभु हों
जब ठान लिया तो ठान लिया
अब सन्मुख चाहे स्वयं प्रभु हों
है अमर आत्मा ..विदित है तो
फिर हार मानकर मरना कैसा
रण निश्चित हो तो डरना कैसा

जब उरिण अरुण मातंड लिए
तुमने निश्चय हैं अखण्ड किये
अब जीत हो या मृत्यु हो अब
जीना क्या बिना घमण्ड लिए
निश्चित सब कुछ विदित है तो
फिर बन कर्महीन तरना कैसा
रण निश्चित हो तो डरना कैसा

अब केवल अक्षों से ज्वाल उठें
भीषण भुज – दंड विशाल उठें
नभ, जल, थल सब थम जाएँ
जब भारत माता के लाल उठें
निज धर्म धरा पर आक्रमण हो
फिर आपस में लड़ना कैसा
रण निश्चित हो तो डरना कैसा

मन शंकित हो तो बढ़ना कैसा
रण निश्चित हो तो डरना कैसा

________________अभिवृत

तुमसे हैं सब एहसास मेरे

August 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी समय की ठोकर से, यदि हिल जाएँ विश्वास मेरे
कभी जो तुमसे कहने को यदि, शब्द नहीं हों पास मेरे
कभी तुम्हारी अभिलाषाएं,.. यदि मैं पूर्ण न कर पाऊँ
प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

कभी जो मेरा क्रोध यदि, ….अति से ज्यादा बढ़ जाये
कभी जो मेरा अहम् यदि,…… प्रेम के आगे अड़ जाये
कभी जो यदि मैं झूठे कह दूँ, व्यतीत हुए आभास मेरे
प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

कभी विवशतावश तुमको, यदि स्वीकार न कर पाऊँ
कभी रीति-रस्मों के भय से, ..यदि प्रिये में डर जाऊँ
कभी जो यदि पीड़ा प्रतीत हों, प्रिय सारे उल्लास मेरे
प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

कभी तुम्हें अपमानित कर, ….यदि मैं हर्षित हो जाऊँ
कभी तुम्हें तर्षित कर प्रिय यदि में विचलित हो जाऊँ
कभी जो मर्यादाहीन लगें,… प्रिय उन्मुक्त विलास मेरे
प्रिय तुम भूल नहीं जाना, ..तुमसे हैं सब एहसास मेरे

_______________अभिवृत

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