जनून

June 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जुनून जुनून जुनून
नफरतों का है ये जुनून

कहीं जात तो कहीं जमात
रंग – बिरंगा हो गया खून
कहीं हत्या कहीं हड़ताल
सवाल के कटघरे में है कानून
जुनून जुनून जुनून
नफरतों का है ये जुनून

महज बहसबाजी ही
बन गयी है अब सुकून
देशभक्ति व् देशप्रेम
और बन गया एक मजमून
जुनून जुनून जुनून
नफरतों का है ये जुनून

बेचैन हवा बेचैन फ़िज़ा
चाहतों से हैं ये महरूम
फन कुचल डालो इनका
जहरीले नागों का है ये हुजूम
जुनून जुनून जुनून
नफरतों का है ये जुनून