जिंदगी मौत सी

July 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रुह जब लहू होकर रोती है
मौत से जिंदगी जब रूबरू होती है
लौट आते है सारे मंजर नजर में मेरी
जब जिंदगी मौत सी हूबहू होती है

दुनिया का मेला

May 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तन क्या मिट्टी का ढेला
जीवन नश्वर कुछ पल का खेला
फिर भी क्यों तू इतराता है
नहीं टिकेगा ये दुनिया का मेला

फ़र्ज़ राखी का

July 24, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

न था मित्र कोई सखा मेरा
जन्मा था वो बनके दोस्त मेरा।

पहली दफा मुस्कुराया वो,
मन प्रफुल्लित हुआ था मेर।
जैसे
गुड़हल के पुष्प से निकली हो एक कली
और लुटाई हो उसने सुंदरता मुझपर।

कदम धरती पर रखा था उसने
और बरसाया था अपना मोहन मुझपर।

गयी थी मई पीया के,
मन संकुचित हुआ था मेरा;
होगा कैसा वो
मन रूखा हुआ था मेरा।

नग्न आँखों ने निहारा था उसे
हेमन्त बरसा था नयनों से मेरे।
जब विदा हुई थी मैं
आंसू सुख गए थे मेरे।

था किया पूरा अपना कर्त्तव्य उसने
रखा था मान मेरी राखी का
मई ही अनभिज्ञ थी
ना चुका सकी फ़र्ज़ उसकी राखी का।

– Anshita

New Report

Close