महात्मा गाँधी

September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

चले हम उस रह पर,जो रह बापू ने दिखाई,
छलके चरित्र मे सबके सदा जीवन और सचाई |
खुशियों से भर जाये हर एक आंगन,
देश को चाहिए गाँधीवादी शासन |

बिना खून बहाये, बिना चोट पहुंचाए
अंग्रेज उन्होंने मार भगाए
उच्च कर्म करके बढाया देश का मान
गाते रहते
“रघु पति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम ”
इस दशहरे जाला दो मन का रावन
देश को चाहिए गांधीवादी शासन

महात्मा गाँधी

September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर साल मेरी पुस्तक (हिंदी )मे,
महात्मा गाँधी का पाठ जरूर होता है |
बापू का व्यक्तिव याद करता हूँ,
तो “सदा जीवन, उच्च विचार ” याद आता है |

बापू फिर से आकर,
देश बचा लो,
क्रांति बिगुल बजाकर |

तुमने जो जलाया उम्मीद का दिया,
मशाल वो बन गया था |
दुगने लगान के आगे तब,
हर किसान तन गया था |

भुखमरी, महामारी से अंग्रेजो को क्या लेना था,
अकाल से देश शमशान बन गया था |
लाठियों की मार से गोलियों की बौछार से,
देश का कोना -कोना खून से सन गया था |

राष्ट्रपिता तुम हमारे, हो साबरमती के संत,
दांडी मार्च करके, नमक कानून का किया अंत |
एक आवाज पे उठ खड़े हुए देशवासी अनंत,
चरखे की तरहा घुमा दिया सरकार को,
मिला मिटटी में कर दिया उसका अंत |

अब देश का वर्तमान हाल बदला,
100 का नोट 1000मे बदला, 200 का दो हजार मे|
देखो बापू,
भ्रष्टाचारी लूट खा गए,
देश को बेच स्विस बाजार मे |
बापू फिर से आकर,
देश बचा लो,
क्रांति बिगुल बजाकर |

महात्मा गाँधी

September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर साल मेरी पुस्तक (हिंदी)मे,
पाठ महात्मा गाँधी का होता है,
बापू का व्यक्तित्व याद है पर,
असल जिंदगी मे कोई असर नहीं इसका होता आता है |

बापू फिर से आकर,
देश बचा लो, क्रांति बिगुल बजाकर |

तुमने जो जलाया उम्मीद का दीया,
मशाल वो बन गया था |
दुगने लगाना के आगे तब,
हर किसान तन गया था |

भुखमरी, महामारी से अंग्रेजो को क्या लेना था,
अकाल पड़ कर देश शमशान बन गया था |
लाठियोंऔर गोलियों के प्रहार से,
देश का कोना कोना खून मे सन गया था |

राष्ट्रपिता तुम हमारे, साबरमती के हो संत,
तुम्हारी एक आवाज पे देशवासी खड़े हो गए अनंत,
दांडी मार्च करके, किया नमक कानून का अंत,
चरखे की तरहा घुमा दीया सरकार को,
मिलाकर मिटटी मे किया उसका अंत |

आज का हाल देश का देखो,
100 का नोट 1000 मे बदला, 200 का दो हजार मे,
देखो बापू, भ्रष्टाचारी लूट खा गए,
देश को बेच दीया स्विस बाजार में |

सब भूल गए तेरे बलिदान बेशरम बनके,
अब तो बक्सों में बंद होकर रह गए,
गाँधी काला धन बनके |

बापू फिर से आकर,
देश बचा लो, क्रांति बिगुल बजाकर |

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