तुम्हे मालूम हो ..

July 9, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हे मालूम हो …
कुछ बाकी सा रह गया है तुम्हारे – मेरे दरम्यान…
जिसे मैं बहुत कोशिश करने पर भी शब्द नहीं दे पाता,
बस यूँही कभी महसूस कर लिया करता हूँ अकेले में,
गोयाकि,
कुछ फुसफुसाहटें,
कुछ पहली बारिशें,
कुछ अधपके से तुम्हरे साथ देखे ख्वाब,
कुछ तुम्हारी सी छुअन,
कुछ चुम्बन,
कुछ अकेली-अकेली सी ढीठ शामें,
कुछ आँखों-आँखों में काटी लम्बी रातें,
कुछ करीने से सहेजे हुए तुम्हारे लैटर,
और कुछ जिंदगी की भाग-दौड़ में भुला दी गयी यादें,
कुछ-कुछ मासूमियत, कुछ-कुछ मुस्कुराहटें,
कुछ-कुछ सावन, कुछ-कुछ चंदा !

है, तो है |

June 26, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूँ तो है बेताब और भी कई, आशिक कई, तन्हा कई,
पर दिल आज भी सिर्फ उसी के लिए बेकरार है, तो है |

बहुत लिखा गया, बहुत पढ़ा गया, कुछ किया भी गया,
प्यार, मुहब्बत, इश्क, जवानी सब लफ्फाज़ी है, तो है |

वो 8 सालों से गाँव में अकेली रहती है, कभी न कोई ख़त न कोई तार,
पर बूढी आँखों में बेटे से मिलने की आस, आज भी है, तो है |

उसके सपने बांधे गए चांदी की जंजीरों से, सिसकियाँ दबा दी शहनाई की आवाज़ से,
अब बाप के कंधो पर बेटियों का बोझ है, तो है |

यहाँ कुछ जानें रोज जाती है, कुछ जिस्म रोज नोचे जाते हैं,
पर इस शहर में सब अपनी धुन में मगन है, तो है |

कुछ टूटे सपने, कुछ अनुभव खट्टे-मीठे,
कुछ कसमें सच्ची, कुछ वादे झूठे,
कुछ अनुत्तरित सवाल, कुछ मचे हुए बवाल
अब इसी का नाम जिंदगी है, तो है |

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