तू मुझे चाह ले

August 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू मुझे चाह ले संवर जाऊं।।
या कहे टूट कर बिखर जाऊं।।

रास्ता कौन मेरा तकता है
लौटकर किसलिए मैं घर जाऊं।।

तू सफ़र में हो तो ये मुमकिन है
मैं संग-ए-मील सा गुज़र जाऊं।।

जो न पूछे तो तेरा ज़िक्र करूं
कोई पूछे तो मैं मुकर जाऊं।।

इश्क़ का मर्ज़ लाइलाजी है
चाहे अमृत पिऊं, ज़हर खाऊं।

तू मुझे चाह ले

August 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तू मुझे चाह ले संवर जाऊं।।
या कहे टूट कर बिखर जाऊं।।

रास्ता कौन मेरा तकता है
लौटकर किसलिए मैं घर जाऊं।।

तू सफ़र में हो तो ये मुमकिन है
मैं संग-ए-मील सा गुज़र जाऊं।।

जो न पूछे तो तेरा ज़िक्र करूं
कोई पूछे तो मैं मुकर जाऊं।।

इश्क़ का मर्ज़ लाइलाजी है
चाहे अमृत पिऊं, ज़हर खाऊं।

दिल की डूबें न कश्तियां

August 2, 2020 in ग़ज़ल

मेरी पुरनम कहानियां सुनकर।।
दिल की डूबें न कश्तियां सुनकर।।

तेरे चर्चे में फूलों की ख़ूशबू
पास आती हैं तितलियां सुनकर।।

दूल्हा बाज़ार से ख़रीदेंगे
क्या कहेंगी ये बेटियां सुनकर।।

वह मुझे याद कर रही होगी
लोग टोकेंगे हिचकियां सुनकर।।

सच भी उसको लगे बहाने सा
ख़त्म होंगी न दूरियां सुनकर।।

सफ़र छोड़ना पड़ा

August 2, 2020 in ग़ज़ल

सौ बार सरे-राह सफ़र छोड़ना पड़ा।।
मंज़िल पे हर परिन्द को पर छोड़ना पड़ा।।

पुश्तैनी घर की जब मेरे दहलीज़ गिर पड़ी
घर को बचाने के लिए घर छोड़ना पड़ा।।

दहशत के लिए हो रहे हैं हमले चारसू
हमलों के ही ज़वाब में डर छोड़ना पड़ा।।

अब तो मिला जो काम वही रास आ गया
जब बिक नहीं सका तो हुनर छोड़ना पड़ा।।

इनसान ने डंसने की रवायत संभाल ली
सांपों को शर्म आयी जहर छोड़ना पड़ा।।

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