गाथा आजादी की

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लहू के हरेक बूँद से लिखी हुई कहानी है I
मेरे हिन्द की आजादी की गाथा जरा निराली है II

विश्वास की नदियाँ यहा, निश्छल सा प्यार था कभी
रहते खुशी से सब यहा, न द्वेष लेशमात्र भी
कुछ धूर्त आ गए यहा, कपटी दोस्त की तरह
इस देश को बेच दिया, हृदय हीन गुलामो की तरह
कैद कर दिया हमें अपने ही परिवेश में
कुंठित हुआ है जन जन ,देखो आज इस तरह
जिस्म पे हुए हरेक जुल्म की निशानी है I
मेरे हिन्द की आजादी की गाथा जरा निराली है II

यत्न है मेरा यही, रहो स्वतंत्र तुम विहारती
इस तन को भी मिटा गए खातिर तेरे माँ भारती
कहीं जो फिर इस जिस्म में, रूह को सजानी हो
आरजू जो है जीने की, इस हिन्द में जगानी हो
कभी हो सके ये तो है सौभाग्य मेरा
कि फिर तेरे लिए वतन, कुर्बाँ मेरी जवानी हो
कलमो के नित रूदन से अंकित हुई कहानी है I
मेरे हिन्द की आजादी की गाथा जरा निराली है II

पत्र

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये लहू कह रहा है कि भूल न जाना,
न हम कर सके जो वो करके दिखाना,
हम मिटे सरहदो पे कोई गम हमें नहीं
इस हिन्द की आजादी का , न कोई मोल तुम लगाना

कण कण समेट हम धरा से,एक अडिग शैल बन जाएंगे
तुम छू सको हर कोर को, एेसा स्वतंत्र नभ दे जाएंगे
कभी शूल जो बिखरे हुए हो मुश्किलों के वतन पे,
इस देह में उनको समा, कहीं तिरंगे में लिपट जाएंगे I

प्रेम का विश्वास का नित दीप तुम जलाना,
मेरे हिन्द को विकास के पथ पर तुम चलाना,
ये कर्तव्य है तेरा सदा सुनो ए नौजवाँ,
पग पग हर एक मोड़ पर तुम इसको निभाना I

पत्र

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये लहू कह रहा है कि भूल न जाना,
न हम कर सके जो वो करके दिखाना,
हम मिटे सरहदो, पे कोई गम हमें नहीं
इस हिन्द की आजादी का , न कोई मोल तुम लगाना I

कण कण समेट हम धरा से,एक अडिग शैल बन जाएंगे
तुम छू सको हर कोर को, एेसा स्वतंत्र नभ दे जाएंगे
कभी शूल जो बिखरे हुए हो मुश्किलों के वतन पे,
इस देह में उनको समा, कहीं तिरंगे में लिपट जाएंगे I

प्रेम का विश्वास का नित दीप तुम जलाना,
मेरे हिन्द को विकास के पथ पर तुम चलाना,
ये कर्तव्य है तेरा सदा सुनो ए नौजवाँ,
पग पग हर एक मोड़ पर तुम इसको निभाना I

भारतमाता

August 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वर्णिम ओज सिर मुकुट धारणी,विभूषित चन्द्र ललाट पर
गुंजन करे ये मधुर कल-कल, केशिक हिमाद्रि सवारकर
आभामय है मुखमडंल तेरा, स्नेहपू्र्णिता अतंरमन।
अभिवादन माँ भारती, मातृभूमि त्वमेव् नमन।।

बेल-लताँए विराजित ऐसे, कल्पित है जैसे कुण्डल
ओढ दुशाला तुम वन-खलिहन का ,जैसे हरित कोमल मखमल
तेरा यह श्रृंगार अतुलनीय, भावविभोर कर बैठे मन।
वन्दे तु परिमुग्ध धरित्री, धन्य हे धरा अमूल्यम्।।

वाम हस्त तुम खडग धरे, दाहिने में अंगार तुम
नेत्र-चक्षु सब दहक रहे, त्राहि-त्राहि पुकारे जन-जन
स्वाँग रचे रिपु पग-पग गृह में, इन दुष्टों का करो दमन।
पूजनीय हे सिंधुप्रिये तुम, मातृभूमि त्वमेव् नमन ।।

क्या है भारत।

August 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या है भारत ।

एक कल्पना है ये भारत, हरिअर वन-खलिहानो की
रहे सूखी जहाँ ये धरती तो उसे भारत नही समझना

एक उम्मीद है ये भारत, जो नित् पथ दिखाए जग को
बिखरे जो यूँ तूफाँ से तो उसे भारत नहीं समझना

एक आवाज है ये भारत,जो मधुर ज्ञान दे जगत को
कहीं गुम अगर हो जाए तो उसे भारत नहीं समझना

एक विचार है ये भारत, संगठित करे जो जगत को
विभाजन अगर जो चाहे तो उसे भारत नहीं समझना

एक कर्म है ये भारत, जो जीवन सिखाए जगत को
जो उलझनो में घिर जाए तो उसे भारत नहीं समझना

एक स्वप्न है ये भारत, जो धूमिल करें हर हद को
हलचल से जो टूट जाए तो उसे भारत नहीं समझना

एक राष्ट्र है ये भारत, जो परिवार कहे इस जगत को
ये गुण जहाँ मिल जाए तो उसे भारत ही तुम समझना

यारी

August 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेखौफ है हम, देखो इस जहाँ से
जो संग मेरे तू है इतमिनान से
बीते साये में तेरे ये दिन
तुम्हें कह रहा हूँ यारा ईमान से
कहीं मुस्कुराहट है बिखेरती ,ये बिमारी
मेरी मुश्किलों को आसान कर रही, तेरी यारी
अब बिन तेरे दुनिया लगे ये ,न्यारी न्यारी
मुझपे चढी है दोस्ती की ये खुमारी

कभी रख सके जो, तेरे दिल पे हम कहीं
कुछ आहें ये मेरी, कुछ बात अनकही
इन बातों को तुम दफन कर लेना उस जगह
जहाँ ढूँढ फिर सके ,न तेरे सिवा कोई
पल-पल सताए पल-पल मनाए हमें ये दीवानी
विश्वास के पन्नों मे सिमटी तेरी मेरी कहानी

::कायल्पिक::
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अकेला हिन्दुस्तान

August 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

उथल-पुथल जमीं कहीं पे, हो रहा शिथिल अभिमान I
प्रतीत तो ये हो रहा, आज अकेला हिन्दुस्तान II

यहाँ लुट रही है अस्मिता, पर उनको ये परवाह क्या ?
टूट जाए आशियाँ पर, उनके लिए ये बात क्या ?
दमन किसी के ख्वाबो का, पल पल हो रहा यहाँ;
हनन किसी के साँसो का, हो तो उन्हें परवाह क्या ?
उम्मीद थी जिनसे हमे, इन मुश्किलों को सुलझाने में I
वो मशगूल है सदा कहीं , एक-दूजे को मनाने में II
भँवर में दीन-हीन के, रहा भटक ये नौजवान I
तेरे-मेरे के फेर में, उलझन मे है भारत महान II

वो सरहदों पे देश के खातिर है नित लड रहे I
सर काट ही नही वरन् ये शीश भी कटा रहे I
हम मौन है उनके लिए न अश्रु तनिक बहा रहे I
फिर भी वो हमारे लिए पत्थर खुशी से खा रहे II
खुद सोच न सके उत्थान राष्ट्र का,
वो बैरी भी उन्हें ,गौरव सिखा रहे II
अब जागना पड़ेगा तुम्हें, नौजवान हिन्द के
तलवारे भी उठानी होगी ,पर हद में रह विवेक के
अब रंग जाति वर्ण के बंधन को काटकर,
व्याप्त लघु सोच की दासता को लांघकर ,
इस राष्ट्र का परचम लहराना ही होगा,
हमें तोडने वालो को यह बताना ही होगा,
उर्दू की है सौगात जिसे, हिन्दी का है वरदान I
अनेकता में एकता, मेरे हिन्द की पहचान II

::कायल्पिक::
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