by Manish

दिन का वो कोना

November 8, 2019 in Other

दिन का वो कोना जिसे सब शाम कहते हैं ,
मैं उनको काट कर अलग रख देता हूँ..
मेरी सब शामें बंद हैं अलमारी में बरसों से…

चुभती हुई रातों से जो एक सुई मिल जाए,
तो लम्बे से दिनों से एक धागा मांगूँ..

उन टुकड़ों को सी कर..
एक चादर जो बन जाए कभी..
तो पूरे दिन को मैं शाम की तरह जी लूँ.

by Manish

तू क्या देगा?

August 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू उड़ता रह आसमाँ में कहीं,
मैं ज़मीं का हूँ तो रहूंगा यहीं,
मैं अब तुझे दिखाई भी नही देता,
तू मेरा इम्तेहान क्या लेगा?

सर को गोद में रखे मैं सज़दे में रहा,
मैं अलग हुआ मेरे जिस्म से एक अरसा हुआ,
गुमनाम दफन कर के तू मुझे ये तो बता,
तू किसलिए मेरा बयाँ लेगा?

किसी कोने में तेरे तकिये पे,
वो एक पल मेरा साँस लेता है,
तू मुझे वापिस कर मेरा लम्हा,
तू इससे ज्यादा मुझे क्या देगा?

by Manish

गीली सी नींद

August 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं जब ख्वाबों से गुज़रता हूँ..

तो अक्सर मिल जाते हो तुम..

छत पे नींदें सुखाते हुए.

छत से मेरी रातें टपकती होगी…

by Manish

Mera Pata…

August 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये नज़्म पोछ के आँखों से..

इन्हें कानों में पहन लो तुम,

तो एक आवाज़..

दौड़ के पास आएगी,

और..मेरा पता गुनगुनाएगी.

फुरसत हो तो आ जाना .

by Manish

यतीम ख़्वाब

August 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बारिश में भीगे कुछ ख्वाब..
कल उठा कर लेता आया,

सुखा कर इन्हें,
पूछुंगा आज..
कहाँ से आए?
किसने छोड़ा तुम्हें सड़कों पे?

अखबार में इश्तिहार दे दूंगा..
जिसके हों… वो ले जाये..

कुछ दिन कमरे में रख के..
थोड़ी खुशबू समेट लूँ तो,
ये अंधेरा ज़रा कम हो जाए..

by Manish

पता

August 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं एक नज़्म तेरी आँखों मे सजा कर,
पलकों पे तेरी ख़ुद का पता लिख जाऊंगा.
खुर्दबीन से भी ग़र मैं अब नज़र नहीं आता,
देखो गिरेबाँ अपना.. शायद वहीं मिल जाऊंगा.

by Manish

मैं

August 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं एक नज़्म हूँ मुझे जी कर देखो,
कोई ख़्वाब नहीं कि भूल जाओ मुझे,
मैं एहसास हूँ मुझे महसूस करो,
कोई गीत नहीं कि गुनगुनाओ मुझे.

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