MaN(मन)
ख्वाहिशें
March 10, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ ख्वाहिशें दिल में रहती है
और कुछ दिल से निकल जाती है
तेरी हर एक तस्वीर नयी याद बनाये
और पुरानी यादें बदल जाती है
थक गया हूँ मैं यह कह- कह कर
आने दे मुझे तेरी पनाहों में
मेरी गुज़ारिशो से सुबह शुरू
तेरी ‘ना’ पर शाम ढल जाती है
तकलीफ़ों से निजात दिला दे तू
बेवहज ख्वाबों में मत सताया कर
दिल-ओ-दिमाग को ठंडक मिले
नज़रों में जो तेरी शक्ल जाती है
ना सुनी पायी तू मेरा ये अनकहा
और ना अब सुनना चाहती है
पर तू जिस पल सामने आ जाये
दीवाने के दिमाग से अक्ल जाती है
ख़याल
March 10, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक ख़याल में दुबे रहे और,
बचीखुची मेरी सांसे चली गयी
हम करते रहे तेरा इंतज़ार
और ये दुनिया आगे चली गयी
अब कोई आता है सामने,
तो याद ही नही रहता कौन था?
ध्यान दिया तो महसूस हुआ
आखिर कहाँ ये निगाहें चली गयी
मैं ना कहता था साथ रहना तू,
मेरा भी वक़्त आएगा एक दिन
गाडी,बंगला ,धन दौलत और
सब कुछ हासिल होगा एक दिन
पर तू गयी मुझे मेरे साथ अकेला करके
पता नहीं कहाँ तेरी पनाहें चली गयी
एक ख़याल में दुबे रहे और,
बचीखुची मेरी सांसे चली गयी
हम करते रहे तेरा इंतज़ार
और ये दुनिया आगे चली गयी
:- मनमोहन शेखावत ‘मन’
कुछ
March 10, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
रातों को जब तारे टूटते है,ना मांगता मैं कुछ
तुम जब से आये हो,हासिल तो है सबकुछ
अपनी हँसी से तुम दिल गिरफ्तार करती हो
ये दोस्ती है सिर्फ या उसके ऊपर भी है कुछ
ये बातें मुझे कहने की जरुरत नही होती मगर
तुम्हारी मेरे लिए फ़िक्र ही मेरे लिए है सबकुछ
आखिर तुमसे दूर रह पाना क्यों है मुश्किल
तुम ज़िंदगी या इससे भी बढ़कर ही हो कुछ
तुम्हारी प्यारी बातों से बड़ा आराम मिलता है
कुछ दिल की तसली और कुछ ऐसे ही कुछ
तुम्हारे साथ बिताये हर लम्हे से सुनना है कुछ
जो उसने कह दिया और जो ना कहा है कुछ
अफ़सोस
October 11, 2016 in शेर-ओ-शायरी
इस बात का गम नहीँ की तु मुझे मिल ना पाया।
अफ़सोस है की जिसे तुमने चाहा उसके जैसा बन ना पाया।
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तस्वीरों में।
October 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
सब कुछ मिलकर लगे जैसे कुछ ना मिला हो
कैसी कमी नज़र आती है हाथों की लकीरों में
जिनसे मिलते थे हम अक्सर सब-ओ-रोज़
आज सिर्फ यादें ही मिला करती है तस्वीरों में
तो यह है मामला
October 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्या हुस्न अदा,कैसा शिक़वा गिला
किस्मत में ना था प्यार
इसलिए ही ना मिला
खुदा जानता है मेरा दिल झरने के पानी की तरह साफ़ है
पर यह भी सच है की कमल कभी भी साफ़ पानी में ना खिला
अंदर से ज़िंदा।
October 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ना नजरों में नज़ाकत रहती है
ना दिल में कोई आहट रहती है
हाँ पहले था ‘मन’ अंदर से ज़िंदा
अब तो उसकी दिखावट रहती है
यह सच है।
October 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोई और बात ना करे चलता है
पर तू ना करे तो दिल जलता है
तू ही तो है मेरे हर नगमे मेरी नज़्म
तुझसे दिन शुरू तुझी से ढलता है
गुमान
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
गुमान ही नहीं होता ऐसे महसूस
इश्क़ जो हमें कभी मिला नहीं है
मैंने तो दिया था उधार में दिल
खुद का समझ वापस दिया नहीं है
कभी ख़ुशी कभी गम
June 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़िंदगी में खुशियाँ मिली तो गम भी मिला
मिली चोटें अक़्सर फिर मरहम भी मिला
इसका अफ़शोस नहीं ‘मन’रोया हर राह पर
अफ़शोस के जो चाहा हमेशा कम मिला
खामोश ज़ुबां की बेताबी
June 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
Kavi “MaN”
खामोश जुबां की बेताबी
सुनो कभी तुम ज़रा सी
बाहर सिर्फ़ जूठी हंसी है
अंदर भरी है उदासी
दिल की दस्तक तो तुम सुनो
आँखों की नमी जरुरी
देखा है कभी तुमने चाँद को,
छीन जाये जब इसकी चाँदनी
कुछ ऐसा महसूस मुझको होता है
तेरे बगैर ज़िन्दगी की ये बेबसी
खामोश जुबां की बेताबी
सुनो कभी तुम ज़रा सी
बाहर सिर्फ़ जूठी हंसी है
अंदर भरी है उदासी
kya bataye…
December 18, 2015 in ग़ज़ल
kya bataye kese din maan chalte h
mere..
bahut hi kharab haalat par har pal
machalte h mere.
mein jhuti hasi hasu toh bhi mera hi
kasoor…
ke dusman to dusman dost bhi jalte h
mere….
pahle jin aankhon me sapne the aaj
wo banjar h.
sapne dekhne ke liye bhi sapne taraste
h mere..
sochta hu pyar chahiye to kisi ko dil
dedu.
par hoshle fir vahi galti karne se darte
h mere..
bachpan me bahaya aansu aaj bhi
yaad h.
khuch lamhe jo jiye sadiyo jese gujarte
h mere..
ek to dil nazuk aur har khusi me avsad.
ke bat bat pr aankho se barf ke parvat
pighalte h mere….
by kavi ”MAN”