मुखौटा

January 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

नक़ली चैहरो के नक़ली शहर में घूम रहे लिए नक़ली मुखौटा,
मन में राम बगल में छुरी ,राम राम की माला जपता मुखौटा।

दुनिया की भीड़ में शामिल हों, ईमानदारी की रस्में भूला,
हर लम्हा लम्हा लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहा मुखौटा।

परिंदे शुक्रगुजार हैं पेड़ों के, तिनका तिनका कर घरौंदा बुनता,
अपने को विश्वास में लेकर कितनों की जिंदगी गुमनाम कर रहा मुखौटा।

मुखौटों के पीछे कितने बदरंगी चैहरो की असलियत है छिपी,
किसी का दामन, किसी की इज्जत लूट जश्न मना रहा है मुखौटा।

कितने ग़म हमने छिपा रखें है इस मुखौटे के पीछे हमने,
लोगों की मानसिकता से और धूप छांव सा आभासित होता मुखौटा।।

डॉ राजमती पोखरना सुराना
भीलवाडा राजस्थान
तिथि २८/१/१८